राजस्थान के दुर्ग: प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण

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14-Sep-2022 12+

राजस्थान के दुर्ग: प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण

साथियों राजस्थान का इतिहास काफी समृद्ध है, राजस्थान को राजपूतों की नगरी कहा जाता है। क्योंकि इसकी धरती पर कई वीर राजपूत राजाओं ने शासन किया, इसलिए राजस्थान को “राजपुताना” भी कहा जाता है। राजस्थान की सरजमीं पर राज करने वाले राजाओं ने यहां कई विशाल दुर्गों का निर्माण करवाया था, दुर्ग को किला भी कहा जाता है।  ये दुर्ग राजस्थान के लगभग हर जिले में स्थित हैं, अधिकतर दुर्ग अरावली की पहाड़ियों पर स्थित हैं।

 

इन विशाल किलों की दीवारें अपने अंदर राजस्थान का इतिहास समेटे हुए हैं, इन प्राचीन दुर्गों में लगा एक-एक पत्थर राजपुताना की वीर गाथाओं का गुणगान करता है। सैकड़ों वर्ष पहले बनाये गये ये मजबूत और विशाल दुर्ग आज भी अपना सीना तान कर खड़े हैं। राजस्थान में दुर्गों को देखने के लिए देश-विदेश से हर वर्ष लाखों सैलानी यहां आते हैं और इन प्राचीन किलों की कलात्मकता और इनसे जुड़े समृद्ध इतिहास की यादों को समेट कर अपने साथ ले जाते हैं। बहुत से दुर्गों में संग्राहलय भी स्थापित किये गए हैं जिनमें प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों, वेशभूषाओं, आभूषणों आदि को प्रदर्शित किया जाता है। कुछ किले होटलों में बदल दिए गए हैं तो वहीं कुछ किले वर्तमान में खंडहर के रूप में बदल चुके हैं।

 

दुर्ग शब्द सुनते ही मन में राजस्थान की कल्पना स्वयं होने लगती है। किले राजस्थान के इतिहास का अभिन्न अंग हैं इसलिए इनसे जुड़े असंख्य प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इसलिए राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रत्येक अभ्यर्थी को राजस्थान के दुर्गों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। राजस्थान की समस्त परीक्षाओं जैसे – LDC , Vanpal, Vanrakshak, Second Grade, REET Mains, RAS जैसी सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में दुर्गों से संबंधित प्रश्न अतीत में पूछे गए हैं और भविष्य में भी निश्चित तौर पर पूछे जाएंगे। इसलिए हम आपके लिए लेकर आए हैं राजस्थान के दुर्गों से संबंधित जानकारी से परिपूर्ण ब्लॉग तो इस लेख को पूरा पढ़िए और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अपने साथियों के साथ भी जरूर शेयर करें –

 

दुर्गों के बारे में जानने से पहले हम जानेंगे कि दुर्ग कितने प्रकार के होते हैं, दुर्ग भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, इसलिए आइए पहले जानते हैं दुर्गों के प्रकारों के बारे में –

 

  • जल दुर्ग - इस प्रकार का दुर्ग चारों ओर या तीन ओर से पानी से घिरा होता है, जैसे - गागरोन का दुर्ग, जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
  • वन दुर्ग - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह दुर्ग चारों ओर से वनों से घिरा होता है, जैसे - सिवाणा का दुर्ग।
  • गिरी दुर्ग - एकांत में पहाड़ी पर स्थित दुर्ग जिनमें जल संचय का प्रबंध हो जैसे - कुंभलगढ़ दुर्ग।
  • एरण दुर्ग - खाइयों, जंगलों, कंटीली झाड़ियों और विशाल चट्टानों से गिरा दुर्ग जहां तक पहुंचना कठिन हो जैसे - रणथम्भौर का दुर्ग।
  • पारिख दुर्ग - यह दुर्ग चारों ओर से गहरी खाइयों से घिरे होते हैं जैसे - लोहागढ़ का दुर्ग।
  • पारिध दुर्ग - जिस किले के चारों ओर बड़े-बड़े पत्थरों का मजबूत परकोटा होता है जैसे - चित्तौड़गढ़ दुर्ग।
  • सैन्य दुर्ग - जहां शूरवीर रहते हैं एवं जहां व्यूह रचनाओं का निर्माण होता हों, इन किलों को अभेध्य माना जाता है।
  • धान्वन दुर्ग - वह दुर्ग जो मरूस्थल में बना होता है धान्वन दुर्ग कहलाता है, जैसे - जैसलमेर का दुर्ग।
  • सहाय दुर्ग - इस दुर्ग में सहायक प्रवृति के लोग निवास करते हैं अर्थात् जो युद्ध के समय सहायता कर सकें।

 

अब हम जानते हैं राजस्थान के दुर्गों के बारे में –

अजयमेरू दुर्ग (तारागढ़, अजमेर) -

 

  • इस दुर्ग को 'गढ़बीठली' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह बीठली पहाड़ी पर स्थित है।
  • यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग माना जाता है, साथ ही यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चौहान नरेश अजयराज ने करवाया था।
  • मेवाड़ के राणा रायमल के छोटे युवराज पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी तारावती के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा था।
  • इस दुर्ग की अभेद्यता के कारण ही विशप हैबर ने इसे राजस्थान का जिब्राल्टर अथवा पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर भी कहा है।
  • इस किले के अंदर मुस्लिम संत मीरान साहेब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।

 

 

आमेर का किला, जयपुर -

 

  • यह गिरी श्रेणी का एक दुर्ग है। वर्तमान में जयपुर शहर का प्रमुख पर्यटन केंद्र है, जो कि जयपुर शहर से 11 किमी दूर है।
  • 1592 में राजा मानसिंह ने इस किले का निर्माण करवाया था।
  • इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है।
  • इस किले का वास्तुशिल्प हिंदू और मुगल वास्तुशिल्प का मिलाजुला रूप है।
  • इसके प्रवेश द्वार को गणेश पोल कहा जाता है।
  • किले में तीन महल - शीश महल, दीवान ए आम और दीवान ए खास प्रमुख हैं।
  • किले के अंदर विश्व विख्यात शिला देवी का मंदिर भी स्थित है।
  • मावठा तालाब और दिलारान का बाग इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते हैं।

 

 

नाहरगढ़ दुर्ग, जयपुर

 

  • 1734 ईस्वी में महाराजा सवाई जयसिंह ने इस किले का निर्माण (मराठों के विरुद्ध) अपनी राजधानी की सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था।
  • यह दुर्ग अरावली की पहाड़ी पर स्थित है इस किले से पूरे जयपुर शहर का नजारा दिखाई देता है, इसलिए इसे 'जयपुर का मुकुट' भी कहते हैं।
  • इस किले के अंदर भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर भी स्थित है इसलिए इसे सुदर्शन गढ़ भी कहा जाता है।
  • राजा माधव सिंह ने इस किले में 9 महलों का निर्माण भी करवाया था।
  • इसके साथ ही आपको एक परिसर में सवाई माधोसिंह द्वारा निर्मित एक “माधवेन्द्र भवन” भी देखने को मिलेगा।
  • किले में नाहर सिंह भोमिया जी का एक मंदिर भी स्थित है, इन्हीं के नाम पर इस किले का नाम नाहरगढ़ रखा गया।

 

जयगढ़ दुर्ग, जयपुर

 

  • इस किले के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है लेकिन माना जाता है जयगढ़ दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह ने शुरू करवाया लेकिन अधिकतर निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया।
  • जिस पहाड़ी पर यह दुर्ग स्थित है उसे 'चील का टीला' भी कहा जाता है।
  • जयगढ़ किले में एक तोप बनाने का कारखाना भी स्थित है। एशिया की सबसे बड़ी तोप 'जयवाण' भी इसी किले में स्थित है।
  • इस दुर्ग को ‘संकट मोचक दुर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • 1975-76 ई. में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के काल में गुप्त खजाने की खोज में यहाँ खुदाई की गई थी।

 

रणथम्भौर का किला (सवाई माधोपुर) -

 

  • सवाई माधोपुर जिले में स्थित यह दुर्ग चारों ओर से अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है यह दुर्ग एरण श्रेणी का दुर्ग है।
  • रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण रणथम्भन देव, के द्वारा करवाया गया था।
  • अबुल फजल ने इस दुर्ग के लिए लिखा था कि - "अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है"
  • यह दुर्ग भारत के प्रसिद्ध रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।
  • रणथम्भौर दुर्ग में स्थित दर्शनिय स्थल निम्नलिखित है। जैसे-
  • त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर,  सुपारी महल,  जौहरा भौहरा महल, जोगी महल, 32 खम्भो की छतरी या न्याय की छतरी, हम्मीर महल, हम्मीर कचहरी, रानीहाड़ तालाब, कुत्ते की छतरी

 

 

मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) -

 

  • राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव मई, 1459 में रखी गई थी।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग चिड़िया-टूक पहाडी पर निर्मित है।
  • मोर जैसी आकृति के कारण यह किला ‘मयूरध्वजगढ़’ भी कहलाता है।

 

मेहरानगढ़ किले में दर्शनीय स्थल -

1- माता चामुंडा मंदिर - यह मंदिर महाराजा राव जोधा ने बनवाया।

2- चोखेलाव महल- राव जोधा द्वारा बनवाया महल है।

3- फूल महल - राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा बनवाया महल है।

4- फतह महल - इसका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।

5- मोती महल - इसका निर्माण  सूरसिंह राठौड़ ने करवाया है।

6- भूरे खां की मजार

7- महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय)

  • दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चौकी (श्रृंगार चौकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक हुआ करता था।
  • ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए विशेष रूप से कहा है कि - "इस दुर्ग का निर्माण देवताओं, फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है"
  • 1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त व जीर्ण हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा राव तखतसिंह ने करवाया।
  • दुर्ग में स्थित प्रमुख व प्रसिद्ध तोपें- 1.किलकिला 2.शम्भू बाण 3. गजनी खां 4. चामुण्डा 5. भवानी 6. बिच्छू बाण 7. धूड़धाणी

 

सोनारगढ़ किला (जैसलमेर)-

 

  • इस दुर्ग को "उत्तर भड़ किवाड़" भी कहा जाता है।
  • यह दुर्ग धान्व व गिरी श्रेणी का प्रसिद्ध दुर्ग है।
  • यह दुर्ग त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर निर्मित है।
  • दुर्ग के अन्य नाम - गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़ है।
  • इस दुर्ग की स्थापना राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. में हुआ।
  • इस दुर्ग के निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।
  • पीले पत्थरों से बने होने के कारण "स्वर्णगिरि" कहलाती है।
  • इस किले में 99 बुर्ज स्थित है।
  • यह दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के बाद सबसे बडा फोर्ट है।
  • जैसलमेर दुर्ग की सबसे प्रमुख विशेषता है कि इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जिसे जिनभद्र कहते है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वर्ल्ड हैरिटेज सूची में सम्मिलित किया गया।

 

जैसलमेर में ढाई साके होना लोकविश्रुत है।

 

1- पहला साका : दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के बीच भीषण युद्ध हुआ।

2- द्वितीय साका : फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण से रावल दूदा व त्रिलोक सिंह  वीरगति को प्राप्त की।

3- तीसरा साका : जैसलमेर का तीसरा साका जैसलमेर का अर्द्ध साका राव लूणसर में 1550 ईसवी में हुआ।

आक्रमण करने वाला कन्द शासक अमीर अली था।

 

गागरोण दुर्ग(झालावाड़) -

 

  • इस दुर्ग का निर्माण परमार वंश की डोड शाखा के प्रमुख शासक बीजलदेव ने करवाया था।
  • डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग "डोडगढ/ धूलरगढ़" नामों से भी जाना जाता है।
  • “चौहान कुल कल्पद्रुम” के हिसाब से खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू न अपने बहनोई बीजलदेव डोड की हत्या करके धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण दुर्ग रखा।
  • यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा एक अनूठा दुर्ग है।
  • गागरोण दुर्ग कालीसिंध व आहु नदियों के संगम पर स्थित जल श्रेणी का दुर्ग है।
  • विद्वानों के अनुसार इसे पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्व ग्रन्थ “वेलिक्रिसन रूकमणीरी” गागरोण में रहकर लिखा था।
  • अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर के रूप में दे दिया जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।

 

दर्शनीय स्थल -

1.संत पीपा की छत्तरी 2. मिट्ठे साहब को दरगाह 3.जालिम कोट परकोटा 4. गीध कराई स्थित है।

 

साके-

  • प्रथम साका - सन् 1423 ईसवी में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के बीच भीषण युद्ध हुआ। विजय के पश्चात दुर्ग का भार शहजादे जगनी खां को सौपा गया। गागरोन के पहले साके का विवरण शिवदास गाढण द्वारा लिखि गई पुस्तक ‘अचलदास खींची री वचनिका’ में मिलता है।
  • दूसरा साका - सन् 1444 ईसवी में वाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के बीच भीषण युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुर्ग में पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) ने नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर प्रदर्शित किया। महमूद खिलजी ने जीत के उपरांत दुर्ग का नाम बदल कर मुस्तफाबाद दुर्ग रखा।

 

कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद) -

 

  • राजसमंद की जरगा पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग अरावली की 13 चोटियों से घिरा हुआ है।
  • यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है और यह 1148 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
  • इस दुर्ग को महाराणा कुम्भा ने विक्रम संवत् 1505 ईसवी में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की याद में बनवाया।
  • इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की देखरेख में हुआ था।
  • इस दुर्ग को "मेवाड़ की आंख" भी कहा जाता है।
  • इस दुर्ग की ऊंचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि ”यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी नीचे गिर जाती है"।
  • कर्नल टॉड ने इस दुर्ग की तुलना “एस्टुकन” से  भी की है।
  • इस दुर्ग के चारों और 36 किलोमीटर लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि चार घुडसवार एक साथ बराबर अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे ‘भारत की सबसे बड़ी दीवार’ भी कहा जाता है।
  • कुम्भलगढ दुर्ग के अंदर एक छोटा दुर्ग भी स्थित है, जिसे कटारगढ़ कहा जाता है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान भी रहा है।
  • दुर्ग के अन्य नाम – कुम्भलमेर, कुम्भलमेरू, कुंभपुर, मच्छेद और माहोर अन्य नाम है।
  • इस दुर्ग में ‘झाली रानी का मालिका’ भी मौजूद है।

 

 

भरतपुर दुर्ग(भरतपुर) -

 

  • इस दुर्ग को सन् 1733 ईसवी में राजा सूरजमल ने निर्मित करवाया था।
  • मिट्टी से बना यह दुर्ग अपनी अजेयता के लिए राज्य में प्रसिद्ध है।
  • किले के चारों ओर सुजान गंगा नहर भी बनाई गई जिसमे पानी भर दिया जाता था यह सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
  • यह दुर्ग पारिख श्रेणी का एक मुख्य दुर्ग है।
  • इस दुर्ग में मोती महल, जवाहर बुर्ज व फतेह बुर्ज (अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक) स्थित है।
  • सन् 1805 ईसवी में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन वह पूर्णत असफल रहा।
  • इस दुर्ग में लगा अष्टधातु का दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ईसवी में ऐतिहासिक लाल किले से उतार कर लाए थे।

     

चित्तौड़गढ़ दुर्ग -

 

  • यह चित्रकुट पहाड़ी पर स्थित, राजस्थान का एक प्राचीनतम गिरी दुर्ग है।
  • इस दुर्ग को चित्रांगन मौर्य ने 8 वीं सदी में निर्मित करवाया।
  • इस दुर्ग को राजस्थान राज्य का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेशद्वार तथा दुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं।
  • इस किले के बारे में कहा जाता है कि “गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया है”
  • चित्तौडग़ढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा दुर्ग है।

 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में देखने योग्य स्थल -

 

विजय स्तम्भ -

इसे मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा ने मुगल शासक महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर जीत (1442 ई.) के स्मारक के रूप में भगवान विष्णु के नाम विजय स्तम्भ को बनवाया। इसे "विष्णु स्तम्भ" भी कहते है। यह विजय स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है। इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। विजय स्तम्भ को भारतीय इतिहास में "मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर" भी कहा जाता हैं। विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूंजा को माना गया है।

 

जैन कीर्ति स्तम्भ -

  • चित्तौडगढ़ दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ को अनुमानित भगेरवाल जैन जीजा कथोड द्वारा 11 वीं या 12 वी शताब्दी में बनवाया गया। यह 75 फुट ऊंचा और 7 मंजिला स्तम्भ है।
  • कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल,फतेह प्रकाश संग्रहालय तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था आदि प्रमुख दार्शनिक स्थल स्थित है।

 

साके-

  • प्रथम साका - सन् 1303 ईसवी में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का पहला साका हुआ। चित्तौडगढ़ को जीतने वाला आक्रान्ता अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया था। चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कवि और लेखक अमीर ने अपनी कृति तारीख -ए-अलाई में वर्णित किया है।
  • द्वितीय साका - 1534 ई. में मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य के समय शासक बहादुर शाह ने किया था। युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्णावती ने जौहर किया था।
  • तृतीय साका - सन् 1567 ईसवी में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह पर मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था। चित्तौडगढ़ का तृतीय साका राणा जयमल राठौड़ और सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

 

चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल (रिश्ते मे पदमिनी के भाई थे) वीरगति को प्राप्त हुए।

 

 

राजस्थान के अन्य दुर्ग -

 

  • कोटडा का किला – बाडमेर में स्थित है।
  • खण्डार दुर्ग - सवाई माधोपुर में स्थित है।
  • माधोराजपुरा का किला – जयपुर में स्थित है।
  • कंकोड/कनकपुरा का किला – टोंक में स्थित है।
  • शाहबाद दुर्ग – बांरा में स्थित है। नवलवान तोप इस दुर्ग में स्थित है।
  • बनेडा दुर्ग – भीलवाडा में स्थित है।
  • बाला दुर्ग – अलवर में स्थित है।
  • बसंतगढ़ किला – सिरोही में स्थित है।
  • तिमनगढ़ किला – करौली में स्थित है।
  • शेरगढ़ दुर्ग - धौलपुर में स्थित है।
  • शेरगढ़ दुर्ग - बारां में भी शेरगढ़ दुर्ग है।
  • कांकणबाड़ी का किला - अलवर में स्थित है।
  • अचलगढ़ दुर्ग - सिरोही में स्थित है।
  • नागौर दुर्ग - नागौर में स्थित है।
  • जूनागढ़ दुर्ग - बीकानेर में स्थित है।
  • चुरू का किला - चुरू में स्थित है।
  • भटनेर दुर्ग - हनुमानगढ़ में स्थित है।
  • मांडलगढ़ दुर्ग - भीलवाड़ा में स्थित है।
  • भैंसरोडगढ़ दुर्ग - चित्तौड़गढ़ में स्थित है।

 

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