प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण - राजस्थान के लोक देवता

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26-Sep-2022 12+

प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण - राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान के लोकदेवता – राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में जनमानस में अनेक लोक देवता, लोक देवियों और इनके तीर्थों की मान्यता है। इनका वर्णन पौराणिक आख्यानों में तो नहीं मिलता है लेकिन आम लोगों के विश्वास और असीमित श्रद्धा की वजह से इन्हें पवित्र तीर्थ स्वरूपों के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। लोक आस्था के पावन ये राजस्थान के लोकदेवता धाम युगों युगों से प्राणी मात्र को शक्ति, खुशहाली एवं स्वास्थ्य प्रदान कर रहे हैं।

 

लोक देवता किसे कहते है? :-

अलौकिक चमत्कारों और वीरता भरे काम करने वाले महापुरुष आम लोगों के बीच में लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। लोक देवता ऐसे महापुरुषों को कहते हैं जिन्होंने अपने असाधारण और बहादुरी भरे कार्यों से समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना, हिंदू धर्म की रक्षा, सांस्कृतिक उत्थान, समाज सुधार और जनहित में अपना सर्वस्व निछावर कर दिया।

 

इन्हीं सब कारणों की वजह से स्थानीय लोगों ने इन्हें दैवी अंश के प्रतीक के रूप में स्वीकार कर लिया। यह अपने लोक मंगलकारी कार्यों की वजह से लोगों की आस्था के प्रतीक हो गए और इन्हें आम लोगों का मंगलकर्ता और देव तुल्य मानकर पूजा जाने लगा। सभी राजस्थान के लोकदेवता और लोक देवियां अपने अपने समय के महान योद्धा रहे हैं।

 

राजस्थान के लोकदेवता आज भी गांव – गांव में इनके थान, देवल, देवरे (पूजा स्थल) और चबूतरे जनमानस की आस्था के केंद्र हैं। जातिगत भेदभाव और छुआछूत से दूर इन थानों पर सभी लोग इनको पूजने आते हैं। गांवों में लोग इनकी पूजा करते हैं, मन्नत मांगते हैं और इनके पूरा होने पर रात्रि जागरण करवाते हैं। राजस्थान में खासकर मारवाड़ इलाके के प्रमुख पांच लोक देवता – रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी और मेहाजी को पंच पीर माना जाता है। इनके अलावा राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं की जानकारी हम आगे आपको देंगे।

 

राजस्थान के लोकदेवता :

राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं का वर्णन इस प्रकार है :

 

देवनारायण जी लोकदेवता :

  • देवनारायण जी का जन्म 1243 ईस्वी में भीलवाड़ा के आसींद में बगड़ावत कुल के नागवंशीय गुर्जर परिवार में हुआ था।
  • इनके जन्म का नाम उदयसिंह था।
  • इन्होंने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए भिनाय के शासक को मार कर लिया।
  • इन्होंने अपने पराक्रम और सिद्धियों का इस्तेमाल अन्याय के खिलाफ जन कल्याण में किया।
  • ब्यावर के देवमाली में इन्होंने देहत्याग किया।
  • देवमाली को बगड़ावतों का गांव कहते हैं।
  • देवनारायण जी का मूल देवरा भीलवाड़ा के पास गोठां दड़ावत गांव में हैं।
  • इनके देवरो में मूर्ति के स्थान पर बड़ी ईटों की पूजा की जाती है।
  • इनके अनुयाई गुर्जर जाति के लोग होते हैं जो देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं। ‘देवनारायण जी की फड़’ गुर्जर भोपा द्वारा जंतर वाद्य की संगत में पढ़ी जाती है।
  • यह राजस्थान राज्य की सबसे बड़ी फड़ है।
  • इनका मेला भाद्रपद शुक्ला षष्ठी और सप्तमी को भरता है।
  • देवनारायण जी औषधी शास्त्र के ज्ञाता थे।
  • देवनारायण जी ऐसे पहले लोक देवता हैं जिन पर केंद्र सरकार के संचार मंत्रालय ने 2010 में पांच का डाक टिकट जारी किया था।

 

हड़बूजी:

  • हड़बूजी नागौर के भुण्डाल क्षेत्र के राजा मेहाजी सांखला के पुत्र थे।
  • प्रसिद्ध लोक देवता रामदेव जी इनके मौसेरे भाई थे। रामदेव जी की प्रेरणा से हड़बूजी ने योगी बालीनाथ से दीक्षा ली और बाबा रामदेव के समाज सुधार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए आजीवन पूर्ण निष्ठा से काम किया।
  • फलौदी के बेंगटी में इनका मुख्य पूजा स्थल है।
  • इनके पुजारी सांखला राजपूत होते हैं।
  • श्रद्धालुओं के द्वारा मांगी गई मन्नत पूरी होने पर इनके मंदिर में ‘हड़बूजी की गाड़ी’ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस गाड़ी में हड़बूजी पंगु गायों के लिए दूर दूर से घास लेकर जाते थे।
  • इन्हें शकुन शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञान था और ये भविष्य दृष्टा भी थे।
  • हड़बूजी मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हैं।
  • इनके आशीर्वाद स्वरुप दी गई कटार के प्रताप से जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर दुर्ग पर पुनः अधिकार कर इसे मेवाड़ से मुक्त कराया था।
  • ‘सांखला हरभू का हाल’ इनके जीवन पर लिखा गया प्रमुख ग्रंथ है।

 

मेहा जी मांगलिया :

  • मेहा जी को मांगलिया जाति के इष्टदेव के रूप में पूजा जाता है।
  • इनका सारा जीवन धर्म की रक्षा और मर्यादा के पालन में बीता।
  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए इनको वीरगति प्राप्त हुई।
  • राजस्थान के जनजीवन में पंच पीरों के नाम से पूज्य पांच लोक देवताओं में से यह एक है।
  • मेहा जी शकुन शास्त्र के भी अच्छे ज्ञाता थे।
  • आम लोगों की सेवा और सहायता करने की योग्यता की वजह ये लोक देवता के रूप में पूजे गए।
  • बापणी में इनका भव्य मंदिर है।
  • भाद्रपद माह की कृष्ण जन्माष्टमी को मंगलिया राजपूत इनकी पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं।
  • ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने वाले भोपे की कभी वंश वृद्धि नहीं होती और वे बालक गोद लेकर अपना वंश आगे बढ़ाते हैं।

 

 

वीर कल्ला जी :

  • वीर कल्ला राठौड़ का जन्म मारवाड़ के राव अचला जी के घर 1556 ईस्वी में हुआ था।
  • अचला जी मेड़ता शासक राव दूदा जी के बेटे थे।
  • वीर कल्ला जी को कईं सिद्धियां प्राप्त थी।
  • प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
  • चित्तौड़ के तीसरे साके में महाराणा उदयसिंह की ओर से अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की।
  • युद्ध में घायल वीर जयमल को इन्होंने अपने कंधे पर बैठाकर युद्ध किया था।
  • वीर कल्ला जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है इसलिए इनकी पूजा प्रायः नाग के रूप में की जाती है। डूंगरपुर के सामलिया क्षेत्र में इनके काले पत्थर की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है।
  • इन्हें योगाभ्यास और जड़ी बूटियों का भी ज्ञान था।
  • इनके भक्त रविवार को इनकी आराधना करते हैं।
  • इनके श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इनकी आत्मा मंदिर के मुख्य सेवक ‘किरण धारी’ के शरीर में प्रवेश कर लोगों की कष्टों को दूर करती है।

 

मल्लीनाथ जी :

  • मल्लिनाथ जी का जन्म 1358 ईसवी में मारवाड़ के राव तीड़ा जी के बड़े पुत्र के रूप में हुआ था।
  • इनकी माता का नाम जाणी दे था।
  • ऐसी मान्यता है कि मल्लिनाथ जी एक भविष्य दृष्टा और चमत्कारी पुरुष थे जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं से साधारण लोगों की रक्षा की थी और आम जनता का मनोबल बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • ये निर्गुण निराकार ईश्वर को मानते थे।
  • मंडोर के राव चुंडा इनके भतीजे थे।
  • इन्होंने मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को भी युद्ध में हराया था।
  • बाड़मेर के तिलवाड़ा में इनका प्रसिद्ध मंदिर है जहां हर साल चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक पन्द्रह दिन का मेला भरता है जहां बड़ी संख्या में पशुओं का क्रय विक्रय भी होता है।

 

देव बाबा :

  • पशु चिकित्सा और आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान होने की वजह से देव बाबा गुर्जरों और ग्वालों के पालनहार और कष्ट निवारक के रूप में पूजनीय हो गए थे।
  • भरतपुर के नंगला जहाज़ गांव में देव बाबा का मंदिर है जहां हर साल दो बार भाद्रपद शुक्ल पंचमी और चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन मेला भरता है।

 

मामा देव जी :

  • राजस्थान के लोक देवताओं में मामादेव एक ऐसे विशिष्ट लोक देवता है जिनकी मिट्टी या पत्थर की मूर्तियां नहीं होती हैं बल्कि लकड़ी का एक विशिष्ट और कलात्मक तोरण होता है जो गांव के बाहर की मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
  • मामा देव को गांव के रक्षक और बरसात के देवता के रूप में पूजा जाता है।

 

आलम जी :

  • जैतमल राठौड़ वंश के आलम जी को बाड़मेर ज़िले के मालाणी प्रदेश के राड़धरा में देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • इनका थान ‘आलम जी का धोरा’ कहलाता है जहां हर साल भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को इनका मेला भरता है।

 

तल्ली नाथ जी :

  • तल्ली नाथ जी जालौर जिले के सबसे प्रसिद्ध लोक देवताओं में से एक हैं। इनका असली नाम गंगादेव राठौड़ था।
  • अपने अद्भुत शौर्य और चमत्कारिक कार्यों की वजह से ये लोग देवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
  • बाबा तल्ली नाथ जी शेरगढ़ ठिकाने के शासक थे और इनके गुरु का नाम जालंधर नाथ था।
  • गांव में किसी व्यक्ति या पशु के बीमार पड़ने या किसी को ज़हरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बांधा जाता है।
  • जालौर की पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्ली नाथ की मूर्ति स्थापित की गई है। इनके क्षेत्रों को ओरण कहा जाता है जहां पेड़ पौधे नहीं काटे जाते हैं।

 

बाबा झूँझार जी :

  • आज़ादी से पहले सीकर के इमलोहा गांव के एक राजपूत परिवार में जन्मे झूँझार जी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम लुटेरों से गांव और गांव की गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवा दिए। तभी से इन्हें लोगों द्वारा लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा। रामनवमी को हर साल इमलोहा गांव में इनकी याद में मेला भरता है। खेजड़ी के पेड़ के नीचे इनके थान (पूजा स्थल) बनाए जाते हैं।

 

बाबा वीर फत्ता जी :

  • जालौर जिले के साथूं गांव में जन्मे वीर फत्ता जी ने लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवा दिए और हमेशा के लिए लोक देवता के रूप में अमर हो गए।
  • साथूं गांव में इनका एक विशाल मंदिर है जहां भाद्रपद शुक्ला नवमी को हर साल मेला भरता है।

 

वीर पनराज जी :

  • सोलहवीं शताब्दी में जैसलमेर के नगा गांव के एक क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए पनराज जी ने पास के काठौड़ी गांव के ब्राह्मण परिवारों की गायों को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए और तब से ये लोक देवता के रूप में अमर हो गए।
  • इनकी स्मृति में जैसलमेर के पनराजसर गांव में साल में दो बार मेला भरता है।

 

हरिराम जी बाबा :

  • हरिराम जी बाबा सर्पदंश का इलाज किया करते थे। सुजानगढ़ – नागौर मार्ग पर चुरू के गांव झोरड़ा में इनका मंदिर है।
  • इस मंदिर में सांप की बांबी और हरिराम जी बाबा के प्रतीक के रूप में उनके चरण कमल हैं।
  • यहां हर साल मेला भरता है। इनके पिता का नाम रामनारायण और माता का नाम चंदनी देवी था। शेखावाटी क्षेत्रों यानी चूरू, सीकर, नागौर और झुंझुनू में इनकी बहुत भारी मान्यता है।

 

केसरिया कुँवर जी :

  • गोगा जी के पुत्र केसरिया कुँवर जी को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • इनका भोपा सर्पदंश के रोगियों का ज़हर मुंह से चूस कर बाहर निकाल देता है। इनके थान (पूजा स्थल) पर सफेद रंग का ध्वज फहराया जाता है।

 

भोमिया जी :

  • राजस्थान के हर गांव में भोमिया जी को भूमि के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • हर गांव में इनका एक मंदिर होता है और लोग बहुत श्रद्धा भाव से इनकी पूजा करते हैं।

 

डुंगजी – जवाहर जी :

  • डुंगजी – जवाहर जी दोनों सगे भाई थे। इन्होंने राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में धनी और रईस लोगों की अवैध संपत्तियों को लूट कर गरीबों और ज़रूरतमंदों में बांटना शुरू किया
  • इसलिए इन्हें राजस्थान के लोकदेवता के रूप में पूजा जाने लगा।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका की वजह से ये दोनों जनमानस की श्रद्धा के केंद्र बन गए।

 

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