विश्व कठपुतली दिवस : जानें कठपुतली के बारे में

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22-Mar-2022 12+

विश्व कठपुतली दिवस : जानें कठपुतली के बारे में

हर वर्ष 21 मार्च को कठपुतली कला को बढ़ावा देने के लिए विश्व भर में विश्व कठपुतली दिवस मनाया जाता है। यह पूरे विश्व में यूनियन इंटरनेशनेल डे ला मैरियोनेट के राष्ट्रीय केंद्रों और उनके सदस्यों के माध्यम से मनाया जाता है। विश्व कठपुतली दिवस की शुरुआत 2003 में UNESCO से संबद्ध एक गैर-सरकारी संगठन UNIMA द्वारा की गई थी। 21 मार्च 2003 को पहला विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया। मनोरंजन का सशक्त माध्यम रहीं कठपुतलियां जागरूकता का काम भी कर रही हैं। कठपुतलियों के जरिए सामाजिक मुद्दों को रोचक तरीके से भी उठाया जा रहा। कठपुतलियां सुशिक्षित और स्वस्थ समाज का भी बुलंद संदेश दे रहीं। इतिहास में दर्ज नामों की प्रेरक कहानियों को कठपुतलियों के जरिए लोगो तक पहुंचाने के भी प्रयास हो रहे हैं।

 

कठपुतली दिवस मनाने का उदेश्य:

कठपुतली दिवस का मुख्य उदेश्य  कठपुतली कला को बढ़ावा देना। साथ कठपुतली कला के नवीकरण के साथ-साथ कठपुतली की परंपराओं को बनाए रखना और उनकी रक्षा करना है। नैतिक और सौंदर्य शिक्षा के साधन के रूप में कठपुतली का उपयोग करना हैं। कठपुतली एक प्रकार का कथा रंगमंच है जिसमें कठपुतलियों, मानव या जानवरों से मिलती-जुलती निर्जीव वस्तुएँ शामिल हैं। कठपुतली का खेल दिखाने वाले व्यक्ति को पपेट puppeteer के रूप में जाना जाता है।

 

कठपुतलियों को प्रमुख रूप से 6 परिवारों में वर्गीकृत किया गया है

मैरियोनेट तार द्वारा चलाया जाने वालारॉड मैरियोनेट एक रॉड द्वारा समर्थित

हाथ की कठपुतलियाँ हाथ के ऊपर ढीली पकड़ वाली

रॉड कठपुतलियाँ एक छड़ी के समर्थन के साथ नीचे से सक्रिय

छायाचित्र एक बैकलिट स्क्रीन के पीछे उतारा गया

बुनरकू शैली की कठपुतलियां दर्शकों के पूर्ण दृश्य में हेरफेर

 

कठपुतली कला के बारे में तथ्य:

कठपुतली का इतिहास बहुत ही प्राचीन है यह रंगमंच पर खेले जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक है। सर्वप्रथम इस दिवस को मनाने का विचार ईरान के कठपुतली प्रस्तोता जावेद जोलपाघरी के मन में आया था वर्ष 2000 में माग्डेबुर्ग में 18वीं Union Internationale de la Marionnette, (UNIMA) सम्मेलन के दौरान यह प्रस्ताव विचार के हेतु रखा गया 2 वर्षों पश्चात इसे वर्ष 2002 के जून माह में अटलांटा में काउंसिल द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया प्रथम बार वर्ष 2003 में विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया।

 

कठपुतली क्या है?

कठपुतली लकड़ी की या पेरिस ऑफ प्लास्टर की या कागज की लुगदी की बनी होती है| कठपुतली के शरीर के भाग इस प्रकार जुड़े होते हैं की उन से बंधी डोर खींचने पर अलग-अलग खेल सकें। किसी समय राजस्थान की कठपुतली सबसे ज्यादा मशहूर होती थी। लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों, जानवरों की खाल से बनी कठपुतलियों को रंगीन चटखदार गोटे, कांच, घुंघरू, चमकदार रेशमी कपड़े से तैयार किया जाता था। पैरहमन(लबादा जैसा वस्त्र) से सजे-धजे इन कठपुतलियों के पात्र सभी का मन मोह लेते थे। बनावट के साथ-साथ इन कठपुतलियों का खेल प्रदर्शन मंत्रमुग्ध करने वाला होता था। राजस्थान में राजा-रानी, सेठ-सेठानी, जमींदार-किसान और जोकर जैसे पात्रों को लेकर कठपुतलियां बनाई जाती थीं।

 

 

कठपुतली का इतिहास

कठपुतली नृत्य लोकनाट्य की शैली कही जाती है। इसमें लकड़ी,धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों के माध्यम से जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति का मंचन किया जाता है।

कठपुतली प्राचीन काल से ही लोगों के मनोरंजन का एक साधन रहा है। विद्वानों की मानें तो भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के खेल से ही हुआ है। इस आर्ट को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस के अवसर पर संगीत नाटक अकादमी पुतुल उत्सव का आयोजन करने जा रही है। ये उत्सव को देश के 5 बड़े शहरों में आयोजित किया जाएगा।

कठपुतली के इतिहास के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का जिक्र मिलता है। साथ ही सिंहासन बत्तीसी नामक कथा में भी 32 पुतलियों का उल्लेख किया गया है। पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ शिल्पादिकारसे भी जानकारी मिलती है।

विश्व कठपुतली दिवस : जानें कठपुतली के बारे में

 

हर वर्ष 21 मार्च को कठपुतली कला को बढ़ावा देने के लिए विश्व भर में विश्व कठपुतली दिवस मनाया जाता है। यह पूरे विश्व में यूनियन इंटरनेशनेल डे ला मैरियोनेट के राष्ट्रीय केंद्रों और उनके सदस्यों के माध्यम से मनाया जाता है। विश्व कठपुतली दिवस की शुरुआत 2003 में UNESCO से संबद्ध एक गैर-सरकारी संगठन UNIMA द्वारा की गई थी। 21 मार्च 2003 को पहला विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया। मनोरंजन का सशक्त माध्यम रहीं कठपुतलियां जागरूकता का काम भी कर रही हैं। कठपुतलियों के जरिए सामाजिक मुद्दों को रोचक तरीके से भी उठाया जा रहा। कठपुतलियां सुशिक्षित और स्वस्थ समाज का भी बुलंद संदेश दे रहीं। इतिहास में दर्ज नामों की प्रेरक कहानियों को कठपुतलियों के जरिए लोगो तक पहुंचाने के भी प्रयास हो रहे हैं।

 

कठपुतली दिवस मनाने का उदेश्य:

कठपुतली दिवस का मुख्य उदेश्य  कठपुतली कला को बढ़ावा देना। साथ कठपुतली कला के नवीकरण के साथ-साथ कठपुतली की परंपराओं को बनाए रखना और उनकी रक्षा करना है। नैतिक और सौंदर्य शिक्षा के साधन के रूप में कठपुतली का उपयोग करना हैं। कठपुतली एक प्रकार का कथा रंगमंच है जिसमें कठपुतलियों, मानव या जानवरों से मिलती-जुलती निर्जीव वस्तुएँ शामिल हैं। कठपुतली का खेल दिखाने वाले व्यक्ति को पपेट puppeteer के रूप में जाना जाता है।

 

कठपुतलियों को प्रमुख रूप से 6 परिवारों में वर्गीकृत किया गया है

मैरियोनेट तार द्वारा चलाया जाने वालारॉड मैरियोनेट एक रॉड द्वारा समर्थित

हाथ की कठपुतलियाँ हाथ के ऊपर ढीली पकड़ वाली

रॉड कठपुतलियाँ एक छड़ी के समर्थन के साथ नीचे से सक्रिय

छायाचित्र एक बैकलिट स्क्रीन के पीछे उतारा गया

बुनरकू शैली की कठपुतलियां दर्शकों के पूर्ण दृश्य में हेरफेर

 

कठपुतली कला के बारे में तथ्य:

कठपुतली का इतिहास बहुत ही प्राचीन है यह रंगमंच पर खेले जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक है। सर्वप्रथम इस दिवस को मनाने का विचार ईरान के कठपुतली प्रस्तोता जावेद जोलपाघरी के मन में आया था वर्ष 2000 में माग्डेबुर्ग में 18वीं Union Internationale de la Marionnette, (UNIMA) सम्मेलन के दौरान यह प्रस्ताव विचार के हेतु रखा गया 2 वर्षों पश्चात इसे वर्ष 2002 के जून माह में अटलांटा में काउंसिल द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया प्रथम बार वर्ष 2003 में विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया।

 

कठपुतली क्या है?

कठपुतली लकड़ी की या पेरिस ऑफ प्लास्टर की या कागज की लुगदी की बनी होती है| कठपुतली के शरीर के भाग इस प्रकार जुड़े होते हैं की उन से बंधी डोर खींचने पर अलग-अलग खेल सकें। किसी समय राजस्थान की कठपुतली सबसे ज्यादा मशहूर होती थी। लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों, जानवरों की खाल से बनी कठपुतलियों को रंगीन चटखदार गोटे, कांच, घुंघरू, चमकदार रेशमी कपड़े से तैयार किया जाता था। पैरहमन(लबादा जैसा वस्त्र) से सजे-धजे इन कठपुतलियों के पात्र सभी का मन मोह लेते थे। बनावट के साथ-साथ इन कठपुतलियों का खेल प्रदर्शन मंत्रमुग्ध करने वाला होता था। राजस्थान में राजा-रानी, सेठ-सेठानी, जमींदार-किसान और जोकर जैसे पात्रों को लेकर कठपुतलियां बनाई जाती थीं।

 

 

कठपुतली का इतिहास

कठपुतली नृत्य लोकनाट्य की शैली कही जाती है। इसमें लकड़ी,धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों के माध्यम से जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति का मंचन किया जाता है।

कठपुतली प्राचीन काल से ही लोगों के मनोरंजन का एक साधन रहा है। विद्वानों की मानें तो भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के खेल से ही हुआ है। इस आर्ट को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस के अवसर पर संगीत नाटक अकादमी पुतुल उत्सव का आयोजन करने जा रही है। ये उत्सव को देश के 5 बड़े शहरों में आयोजित किया जाएगा।

कठपुतली के इतिहास के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का जिक्र मिलता है। साथ ही सिंहासन बत्तीसी नामक कथा में भी 32 पुतलियों का उल्लेख किया गया है। पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ शिल्पादिकारसे भी जानकारी मिलती है।

 

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