जानिए राजस्थान के राज्य प्रतीकों के बारे में

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22-Jun-2022 12+

जानिए राजस्थान के राज्य प्रतीकों के बारे में

साथियों यदि आप भी राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं तो आपको ज्ञात होगा कि राजस्थान का इतिहास, कला संस्कृति, भूगोल आदि एवं राजस्थान से जुड़ी जानकारियां परीक्षा की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण होती है। प्रासंगिक विषयों के अलावा आपको राजस्थान का ज्ञान होना अनिवार्य है तभी आप परीक्षा में सफलता हासिल कर पाएंगे।

 

इस लेख में हम आपको राजस्थान के राज्य प्रतीकों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, राजस्थान के राज्य प्रतीकों जैसे - राज्य पशु, पक्षी, वृक्ष आदि से जुड़े प्रश्न अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं और इस टॉपिक की जानकारी आपको परीक्षा में 2 से 4 नंबर तक दिला सकती है। इसलिए आपको राजस्थान के राज्य प्रतीकों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

 

आगामी परीक्षाओं जैसे VDO mains, Lab Assistant, REET, RPSC second grade आदि परीक्षाओं के लिए यह टॉपिक बहुत जरूरी रहने वाला है इसलिए इस टॉपिक को कंठस्थ कर के परीक्षा में बैठें।

 

राजस्थान का राज्य पक्षी – गोडावण

 

  • गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा 21 मई, 1981 में मिला।
  • गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्रायोटिस नाइग्रिसेप्स है।
  • गोडावण को अंग्रेजी में ‘ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड बर्ड’ कहा जाता है।
  • गोडावण को स्थानीय भाषा में सोहन चिड़िया और शर्मिला पक्षी भी कहा जाता है।
  • गोडावण के अन्य उपनाम- मालमोरड़ी, सारंग, हुकना, तुकदर, बड़ा तिलोर व गुधनमेर है।
  • राजस्थान में गोडावण सर्वाधिक तीन क्षेत्रों में पाया जाता है- राष्ट्रीय मरूउद्यान (जैसलमेर एवं बाड़मेर, सोरसन (बारां), सांकलिया (अजमेर)।
  • गोडावण के प्रजनन हेतु जोधपुर जन्तुआलय प्रसिद्ध है।
  • गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर और नवम्बर का महीना माना जाता है।
  • गोडावण मुख्यतः अफ्रीका का पक्षी है।
  • इसका प्रिय भोजन मूंगफली व तारामीरा है।
  • गोडावण राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है।
  • 2011 में की IUCN की रेड डाटा लिस्ट में इसे संकटग्रस्त प्रजाति माना गया है।
  • गोडावण के संरक्षण हेतु राज्य सरकार ने 5 जून 2013 को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर राष्टीय मरू उद्यान, जैसलमेर में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारंभ किया।
  • यह प्रोजेक्ट प्रारंभ करने वाला राजस्थान, भारत का प्रथम राज्य है।
  • 1980 में जयपुर में गोडावण पर पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया।

 

राजस्थान के राज्य पशु

राजस्थान के दो राज्य पशु है-

1. चिंकारा (वन्य जीव श्रेणी में)

2. ऊँट (पशुधन श्रेणी में)

 

1. चिंकारा

 

  • चिंकारा को राज्य पशु का दर्जा 22 मई, 1981 में मिला।
  • चिंकारा का वैज्ञानिक नाम गजेला-गजेला है।
  • चिंकारा ‘एण्टीलोप’ प्रजाति का जीव है।
  • चिंकारा को ‘छोटा हिरण’ के उपनाम से भी जाना जाता है।
  • नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर) चिंकारा के लिए प्रसिद्ध है।
  • राज्य में सर्वाधिक चिंकारा जोधपुर में देखे जा सकते हैं।
  • चिंकारा नाम से राज्य में एक तत् वाद्य यंत्र भी है।
  • चिंकारा श्रीगंगानगर जिले का शुभंकर है

 

ऊँट-

 

• ऊँट को राज्य पशु का दर्जा 19 सितम्बर 2014 में दिया गया।

ऊँट वध रोक अधिनियम दिसम्बर 2014 में बनाया गया।

• ऊँट का वैज्ञानिक नाम ‘केमलीन’ है।

• ऊँट को अंग्रेजी में Camel के नाम से जाना जाता है।

• ऊँट को स्थानीय भाषा में रेगिस्तान का जहाज या मरूस्थल का जहाज (कर्नल जेम्स टॉड) के नाम से जाना जाता है।

• ऊँटों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का भारत में एकाधिकार है।

• राजस्थान की कुल पशुसम्पदा में ऊँट सम्पदा का प्रतिशत 0.56 प्रतिशत है।

• राज्य में सर्वाधिक ऊँटों वाला जिला जैसलमेर है।

• राज्य में सबसे कम ऊँटों वाला जिला प्रतापगढ़ है।

• ऊँट अनुसंधान केन्द्र जोहड़बीड (बीकानेर) में स्थित है।

• कैमल मिल्क डेयरी बीकानेर में स्थित है।

• सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में अक्टूबर 2000 में ऊँटनी के दूध को मानव जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया।

• ऊँटनी का दूध कैल्सियम मुक्त अवस्था में पाया जाता है।

• इसलिए इसके दूध का दही नहीं जमता है।

• ऊँटनी का दूध मधुमेह (डायबिटिज) की रामबाण औषधि के साथ-साथ यकृत व प्लीहा रोग में भी उपयोगी है।

• नाचना जैसलमेर का ऊँट सुंदरता की दृष्टि से प्रसिद्ध है।

• भारतीय सेना के नौजवान थार मरूस्थल में नाचना ऊँट का उपयोग करते है।

• गोमठ- फलौदी-जोधपुर का ऊँट सवारी की दृष्टि से प्रसिद्ध है।

• बीकानेरी ऊँट बोझा ढोने की दृष्टि से प्रसिद्ध है।

बीकानेरी ऊँट सबसे भारी नस्ल का ऊँट है।

• राज्य में लगभग 50% ऊँट इसी नस्ल के पाले जाते है।

ऊँटों के देवता के रूप में पाबूजी को पूजा जाता है।

• राजस्थान में ऊँटों को लाने का श्रेय पाबूजी को है।

• ऊँटों के बीमार होने पर रात्रिकाल में पाबूजी की फड़ का वाचन किया जाता है।

• ऊँटों के गले का आभूषण गोरबंद कहलाता है।

• ऊँटों में पाया जाने वाला रोग सर्रा रोग, तिवर्षा है।

• प्रदेश में ऊँटों को संख्या में गिरावट का मुख्य कारण सर्रा रोग है।

ऊँटों में सर्रा रोग नियंत्रण योजना- इस रोग पर नियंत्रण के उद्देश्य से वर्ष 2010-11 में यह योजना प्रारम्भ की गई।

 

 

राजधानी- जयपुर

 

• जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा 18 नवम्बर 1727 में की गई।

• जयपुर की नींव पण्डित जगन्नाथ के ज्योतिषशास्त्र के आधार पर रखी गई।

• जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य को माना जाता है।

• जयपुर नगर के निर्माण के बारे में बुद्धि विलास नामक ग्रंथ से जानकारी मिलती है।

• यह ग्रथ चाकसू के निवासी बख्तराम के द्वारा लिखा गया।

• जयपुर का निर्माण जर्मनी के शहर द एल्ट स्टड एलंग के आधार पर करवाया गया है।

• जयपुर का निर्माण चौपड़ पैटर्न के आधार पर किया गया।

• जयपूर को प्राचीनकाल में जयगढ़, रामगढ़, ढूढाड़ व मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था।

• जयपुर को राजधानी 30 मार्च 1949 को बनाया गया।

• जयपुर को राज्य की राजधानी एकीकरण के चौथे चरण (वृहत् राजस्थान) में बनाया गया।

• जयपुर को राजधानी श्री पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर बनाया गया।

• जयपुर को गुलाबी रंग से रंगवाने का श्रेय रामसिंह द्वितीय को है।

• प्रिंस अल्बर्ट (1876) के आगमन पर जयपुर को रामसिंह द्वितीय के द्वारा गुलाबी रंग से रंगवाया गया।

• 1137 में ढूंढाड़ में दूल्हाराय ने कच्छवाहावंश की स्थापना की। तथा दौसा को राजधानी बनाया।

 

राज्य वृक्ष - खेजड़ी

 

• खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा 31 अक्टूबर, 1983 में दिया गया।

• 5 जून 1988 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया।

• खेजड़ी का वानस्पतिक नाम प्रोसेपिस सिनरेरिया है।

• खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा 31 अक्टूबर, 1983 में दिया गया।

• खेजड़ी को राजस्थान का कल्प वृक्ष, थार का कल्प वृक्ष, रेगिस्तान का गौरव आदि नामों से जाना जाता है।

• खेजड़ी को Wonder Treeभारतीय मरूस्थल का सुनहरा वृक्ष भी कहा जाता है।

• खेजड़ी के सर्वाधिक वृक्ष शेखावटी क्षेत्र में देखे जा सकते है।

•  खेजड़ी के सर्वाधिक वृक्ष नागौर जिले में देखे जाते है।

• खेजड़ी के वृक्ष की पूजा विजया दशमी/दशहरे (आश्वीन शुक्ल पक्ष-10 ) के अवसर पर की जाती है।

• खेजडी के वृक्ष के नीचे गोगाजी व झंझार बाबा के मन्दिर बने होते है।

• खेजड़ी को विश्नोई सम्प्रदाय में शमी के नाम से जाना जाता है।

• खेजड़ी को स्थानीय भाषा में सीमलो कहा जाता है।

• खेजड़ी की हरी फलियां सांगरी (फल गर्मी में लगते हैं) कहलाती है।

• खेजड़ी का पुष्प मीझर कहलाता है।

• खेजड़ी की सूखी फलियां खोखा कहलाती है।

• खेजड़ी की पत्तियों से बना चारा लूम/लूंग कहलाता है।

• पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने अस्त्र-शस्त्र खेजड़ी के वृक्ष पर छिपाये थे।

• वैज्ञानिकों ने खेजड़ी के वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष बताई है।

• राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष एक हजार वर्ष पुराने मांगलियावास गांव (अजमेर) में है।

• मांगलियावास गांव में हरियाली अमावस्या (श्रावण) को वृक्ष मेला लगता है।

• खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना व ग्लाइकोट्रमा नामक कीड़े नुकसान पहुंचा रहे है।

• माटो-बीकानेर के शासकों द्वारा प्रतीक चिन्ह के रूप में खेजड़ी के वृक्ष को अंकित करवाया।

• 1899 या विक्रम संवत 1956 में पड़े छप्पनिया अकाल में खेजड़ी का वृक्ष लोगों के जीवन का सहारा बना।

• ऑपरेशन खेजड़ा नामक अभियान 1991 में चलाया गया।

• वन्य जीवों की रक्षा के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान 1604 में जोधपुर के रामसड़ी गांव में करमा व गौरा के द्वारा दिया।

• वन्य जीवों की रक्षा के लिए राज्य में दूसरा बलिदान 1700 में नागौर के मेड़ता परगना के पोलावास गांव में दूंचो जी के द्वारा दिया गया।

• खेजड़ी के लिए प्रथम बलिदान अमृता देवी बिश्नोई ने 1730 में 363 (69 महिलाएँ व 294 पुरूष) लोगों के साथ जोधपुर के खेजडली ग्राम या गुढा बिश्नोई गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को दिया।

• भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।

• भाद्रपद शुक्ल दशमी को विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली गांव में लगता है।

• अमृता देवी के पति का नाम रामो जी बिश्नोई था।

• बिश्रोई संप्रदाय के द्वारा दिया गया यह बलिदान साका या खड़ाना कहलाता है।

• इस बलिदान के समय जोधपुर का राजा अभयसिंह था।

• अभय सिंह के आदेश पर गिरधर दास के द्वारा 363 लोगों की हत्या की गई।

• खेजड़ली दिवस प्रत्येक वर्ष 12 सितम्बर को मनाया जाता है।

• प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर 1978 को मनाया गया।

• वन्य जीवों के संरक्षण के लिए दिये जाने वाला सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार है।

• अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार की शुरूआत 1994 में की गई।

• यह प्रथम पुरस्कार गंगाराम बिश्रोई (जोधपुर) को दिया गया।

• खेजड़ली आन्दोलन चिपको आन्दोलन का प्रेरणा स्त्रोत रहा है।

• चिपको आन्दोलन उत्तराखण्ड में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में हुआ।

• तेलंगाना का राज्य वृक्ष खेजड़ी (जरमेटी) है।

 

 

राजस्थान का राज्य नृत्य- घूमर

 

  • घूमर को “राजस्थान की आत्मा” भी कहा जाता है।
  • घूमर नृत्य मांगलिक अवसरों, तीज, त्यौहारों पर आयोजित होता है।
  • स्त्रियाँ एक गोल घेरे में चक्कर लगाते हुए यह नृत्य करती है।
  • श्रृंगार रस से सम्बंधित यह नृत्य गुजरात के गरबा नृत्य से सम्बंधित है।
  • घूमर नृत्य का उद्गम मध्य एशिया के भृंग/ मृग नृत्य से हुआ था, मध्य एशिया के इसी नृत्य से पंजाब के भांगड़ा नृत्य का उद्गम माना जाता है।
  • इस नृत्य को राजस्थान लोक नृत्यों का सिरमौर, राजस्थान के नृत्यों की आत्मा, महिलाओं का सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य, रजवाड़ी/सामंतशाही लोक नृत्य कहा जाता है।
  • घूमर नृत्य के दौरान लहंगे के घेर को घूम कहते है।
  • घूमर के साथ लगाया जानेवाला अष्टताल कहरवा सवाई कहलाता है।

घूमर के तीन रूप है-

  1. झुमरिया- बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  2. लूर- गरासिया जनजाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  3. घूमर- इसमें सभी स्त्रियां भाग लेती है।

 

 

राजस्थान का राज्य खेल - बास्केटबॉल

 

  • राजस्थान का राज्य खेल बास्केटबॉल है, इसे वर्ष 1948 में राज्य खेल घोषित किया गया।
  • बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें एक समय पर एक टीम के 5 खिलाड़ी कोर्ट में होते हैं।
  • इसमें टीमें विरोधी टीम के खिलाफ एक 10 फुट (3,048 मीटर) ऊंचे घेरे (गोल) में, संगठित नियमों के तहत एक गेंद डाल कर अंक अर्जित करने की कोशिश करती हैं।
  • बास्केटबॉल अकादमी जैसलमेर में प्रस्तावित है।

 

राजस्थान का राज्य गीत - केसरिया बालम

 

• इस गीत को सर्वप्रथम उदयपुर की मांगी बाई के द्वारा गाया गया।

• इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय बीकानेर की अल्लाह जिलाई बाई को है।

• अल्लाह जिलाई बाई को राजस्थान की 'मरू कोकिला' कहा जाता है।

• यह गीत माण्ड गायिकी शैली में गाया जाता है।

 

राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य- कत्थक

 

  • राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य कत्थक है।
  • कत्थक का उद्गम जयपुर व लखनऊ को माना जाता है।
  • जयपुर को कत्थक का आदिमघराना व पुराना घराना के नाम से जाना जाता है।
  • कत्थक के प्रवर्तक भानू जी महाराज थे

 

 

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